सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त एक जांच समिति ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश और दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ गंभीर कदाचार के आरोपों को लेकर पद से हटाने (impeachment) की सिफारिश की है।
🔍 मुख्य आरोप और निष्कर्ष:
- 14 मार्च 2025 को नई दिल्ली स्थित उनके सरकारी आवास पर लगी आग के बाद अधजली नकदी की बड़ी मात्रा बरामद की गई।
- यह नकदी 30 तुगलक क्रेसेंट स्थित एक स्टोर रूम में मिली, जो जांच पैनल के अनुसार न्यायमूर्ति वर्मा और उनके परिवार के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष नियंत्रण में था।
- 15 मार्च को सबूतों को जानबूझकर हटाने की बात गवाहों के बयानों और इलेक्ट्रॉनिक सबूतों के आधार पर सामने आई।
- यह आचरण न्यायिक जीवन के मूल्यों के पुनरुल्लेख (1997) – “Restatement of Values of Judicial Life” – का उल्लंघन करता है, जिसमें न्यायाधीशों के लिए उच्चतम नैतिक मानकों का पालन आवश्यक है।
👩⚖️ जांच समिति के सदस्य:
- मुख्य न्यायाधीश शील नागू (पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय)
- मुख्य न्यायाधीश जी.एस. संधावालिया (हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय)
- न्यायमूर्ति अनु शिवरामन (कर्नाटक उच्च न्यायालय)
📜 आगे की प्रक्रिया:
पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजयव खन्ना द्वारा तैयार की गई 64 पृष्ठों की रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपी गई है, जिसमें न्यायमूर्ति वर्मा के महाभियोग (impeachment) की सिफारिश की गई है।
यदि इस सिफारिश को स्वीकार कर लिया जाता है, तो यह भारत में किसी कार्यरत उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के विरुद्ध दुर्लभ महाभियोग की प्रक्रिया बन सकती है।