संविधान हत्या दिवस: 1975 के आपातकाल को याद करते हुए

संविधान हत्या दिवस प्रत्येक वर्ष 25 जून को मनाया जाता है, जो भारत के लोकतांत्रिक इतिहास के एक अत्यंत विवादास्पद और निर्णायक क्षण की याद दिलाता है—1975 में लगाए गए आपातकाल की घोषणा। यह दिन उस दौर की गंभीर चेतावनी के रूप में मनाया जाता है जब संविधानिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया, नागरिक स्वतंत्रताएं छीनी गईं, और लोकतांत्रिक संस्थानों को कमजोर किया गया।


ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

25 जून 1975 को, तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सलाह पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के अंतर्गत देश में आंतरिक अशांति का हवाला देते हुए आपातकाल घोषित किया।

अगले 21 महीनों (जून 1975 से मार्च 1977) के दौरान भारत ने निम्नलिखित घटनाएँ देखीं:

  • अनुच्छेद 19 के अंतर्गत नागरिकों के मौलिक अधिकारों का निलंबन
  • प्रेस की सेंसरशिप, और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया का विघटन
  • विपक्षी नेताओं, पत्रकारों, छात्रों और कार्यकर्ताओं की बिना मुकदमे के गिरफ्तारी
  • संविधान में संशोधन, जिससे न्यायपालिका द्वारा प्रधानमंत्री की चुनावी वैधता और आपातकाल की समीक्षा रोकी गई।

इस दिन का महत्व

2024 में आधिकारिक रूप से घोषित यह दिवस निम्न उद्देश्यों को लेकर मनाया जाता है:

  • उन लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित करना, जिन्होंने आपातकाल का विरोध किया और लोकतंत्र की रक्षा की।
  • नागरिकों, विशेष रूप से युवाओं को, संवैधानिक सुरक्षा, मौलिक अधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों के महत्व से अवगत कराना
  • यह संकल्प लेना कि ऐसी तानाशाही प्रवृत्तियों को दोबारा कभी पनपने नहीं दिया जाएगा

यह क्यों महत्वपूर्ण है

इतिहास केवल याद रखने के लिए नहीं होता—उससे सीखने के लिए होता है। संविधान हत्या दिवस हमें सतर्क, जागरूक और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध रहने की प्रेरणा देता है, ताकि भविष्य में कभी भी इस तरह का लोकतांत्रिक अपमान दोहराया न जाए।

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